केदारनाथ धाम कहां पर स्थित है? वहां कब जाय? और कैसे जाएं? यह पूरी जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी। केदारनाथ धाम, चार धाम यात्रा में से एक है जो उत्तराखंड राज्य में स्थित है। केदारनाथ धाम में भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग स्थापित है। केदारनाथ मंदिर का यह ज्योतिर्लिंग सभी 12 ज्योतिर्लिंग में सबसे महत्वपूर्ण है और समुद्रतल से यह 3780 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि जो श्रद्धालु बद्रीनाथ गया और वह केदारनाथ धाम नहीं गया तो उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है।
केदारनाथ धाम कहाँ स्थित है ?
केदारनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है। यह हिंदुओं का एक प्रसिद्ध मंदिर है। केदारनाथ, चार धाम मे से एक है। अन्य तीन धाम गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ है। केदारनाथ मन्दिर, केदार घाटी में स्थित है। केदारनाथ मन्दिर के पास ही मंदाकिनी नदी बहती है।
केदारनाथ धाम का इतिहास और कहानियाँ ?
केदारनाथ धाम के बारे मे कई सारी कहानियाँ प्रचलित है।
ऐसा कहा जाता है कि इस मन्दिर को आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी मे नवनिर्माण करवाया थ। एक मान्यता और है कि इसका निर्माण भोपाल के राजा राजा भोज ने दुसरी शताब्दी में किया था।
बद्रीनाथ धाम का सबसे पहले जिक्र महाभारत में हुआ था। कहा जाता है कि जब पाण्डवों ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों को मारकर विजय प्राप्त की तो उनको इस बात पर ग्लानि हुई कि उन्होंने हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए अपने चचेरे भाईयों और अपने गुरुओं का वध किया।
उन्होंने अपने गोत्र हत्या और ब्रह्महत्या के अपराध के प्रायश्चित के लिए भगवान शिव से क्षमा याचना करने की सोची। जब पाण्डव भगवान शिव से मिलने के लिए भगवान शिव के सबसे प्रिय स्थान काशी गये तो भगवान शिव ने उन्हें आते देख कर अपना रूप एक बैल का धारण किया और वो गढ़वाल क्षेत्र में आ गये। जब पाण्डव काशी गये तो उन्हें भगवान शिव नहीं मिले। भगवान शिव को ढूंढते ढूंढते वे गढ़वाल क्षेत्र की तरफ आये।
जब पाण्डव भगवान शिव को गढ़वाल मे खोज रहे थे तो सबसे पहले बैल के रूप में भगवान शिव को भीम ने देखा। उन्होने उन्हें पकड़ने की कोशिश की लेकिन भगवान ने अपने आप को 5 भागों में 5 जगहों पर विभाजित कर दिया।
इन भागों के नाम पर पंच केदार नाम दिया गया है। उनका एक भाग जो बैल का कुबडा़ केदारनाथ मे गिरा, हाथ तुंगनाथ मे, नाभि और पेट मदमहेश्वर मे, चेहरा रूद्रनाथ में और बाल कापेश्वर में गिरा। पांडवों ने इन पांचो जगहों पर भगवान शिव का मन्दिर बना कर उनकी पूजा की और अपने पापों से मुक्ति पायी।
एक कहानी यह भी प्रचलित है कि नर और नारायण ने भगवान शिव और माता पार्वती की घनघोर तपस्या की और उनको मानवों की रक्षा के लिए केदारनाथ मे ही निवास करने की प्रार्थना की जिसे भगवान शिव ने सहर्ष स्वीकर कर लिया।
केदारनाथ धाम में बाढ़
2013 में केदारनाथ धाम मे आयी सबसे बड़ी आपदा आयी जिसने सरकारी आकड़ों के अनुसार 7000 से ज्यादा लोगों को बहा ले गयी। इस बाढ़ मे पूरे धाम की बहुत ही क्षति पहुंचायी लेकिन केदारनाथ मन्दिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. आज भी लोगों को उस घटना की याद मिटी नहीं है।
आज 10 साल बाद जब हम इस धाम को देखते हैं तो इसका स्वरुप और भी अद्भुत दिखता हैं। आज वहाँ का स्वरूप और धाम का विकास बहुत ही वैज्ञानिक तौर-तरीकों के अनुसार हुआ हैं। तीर्थयात्री पहले की अपेक्षा और अधिक उत्साह के साथ बाबा के दर्शन और बद्रीनाथ धाम की भव्यता को देखने आ रहे हैं।
अमरनाथ की तरह यहां भी चौड़ाबाडी़ झील में बादल फटने से मलबा और बोल्डर ने भारी तबाही ला दिया था। केदार घाटी में अचानक मचे कोलाहल ने सबको चौंका दिया था। किसी ने सोचा नहीं था कि मंदाकिनी नदी इतना विकराल रूप धारण कर के तबाही मचायेगी।
केदारनाथ ट्रेक कैसे करे ?
यहां पर मैं आपको केदारनाथ धाम की ट्रेकिंग के सही तरीके के बारे मे बताने जा रहा हूं ताकी अगर आप ट्रेकिंग करके आप दर्शन के लिए जा रहे हो तो आपको कोई परेशानी ना हो।
केदारनाथ मन्दिर जाने के लिए तीन तरीके हैं। सबसे पहले आप पैदल जा सकते हैं, दूसरा तरीका आप खच्चर या पिट्ठू के द्वारा जा सकते हैं तथा तीसरा और अंतिम तरीका हेलिकॉप्टर के द्वारा जा सकते हैं।
हमने अपनी केदारनाथ धाम की यात्रा को पैदल ही पूरा करने की सोची। हमने अपनी यात्रा हरिद्वार से शुरू की। हरिद्वार से गुप्तकाशी हमने लोकल बस से शुरू की जो बहुतायत में मिलते हैं। बस के अलावा टैक्सी भी मिलती है अगर आप 2 या 2 से अधिक है तो आपको टैक्सी ही लेनी चाहिए क्योंकि इससे आप रास्ते मे आनी वाली प्राकृतिक दृश्यों को देख सकते हैं।
सोन प्रयाग से गौरी कुंड
हमने अपनी केदारनाथ की यात्रा सुबह शुरू किया। जब हम रास्ते में जा रहे थे तो वहा का दृश्य हमे आत्ममुग्ध का दिया। रुद्रप्रयाग में जहा पर मन्दाकिनी नदी और अलकनंदा नदी मिलती है उसने हमे वहा रुक कर उसे देखने को मजबूर कर दिया। रास्ते के साथ साथ मन्दाकिनी नदी भी जाती है। हम दोपहर के 4 बजे गुप्त काशी पहुँचे।
हमने वहा पर एक होटल लिया और कुछ देर वहा रुक कर आराम किया। वहा पर कई सारे होटल है जो सस्ते से लेकर महँगे तक मिल जायेंगे। अगर आप वहा देर से पहुँचते है तो आपको वही रुक जाना चाहिए और आगे की यात्रा अगले दिन शुरू करना चाहिए।
पहले यात्रा सोन प्रयाग से ही शुरू होती थी लेकिन अब सोन प्रयाग से गौरीकुंड तक रस्ते बन गए है तो आप वहा तक मोटर कार से भी जा सकते है। केदारनाथ धाम यात्रा चार धाम यात्रा के अन्तर्गत आता है तो उसके लिए हमे ऑनलाइन पास लेना होता है। अगर आप वहा जा रहे है तो आपको पहले ही पास बनवा लेना चाहिए या आप सोन प्रयाग में भी बनवा सकते है जिसका खर्च मात्र 50 रूपये लगता है।
सोन प्रयाग से गौरी कुंड तक की यात्रा
सोन प्रयाग से गौरीकुंड की दुरी 5 किमी है। आप पैदल या किसी मोटर जीप से जा सकते है। जब हमे पास मिल गया तो हमने यह दुरी जीप से तय करने की सोची। इसके लिए हम मोटर स्टैंड पैर गए और एक जीप में हमने अपना स्थान ग्रहण की। जीप से जाने के लिए जो किराया है वह मात्रा 40 रूपये है और सोनप्रयाग से गौरीकुंड जाने में 20 से 30 मिनट लगता है।
टैक्सियां आपको हर समय उपलब्ध रहती है। अगर आप पैदल भी जाना चाहते है तो आप जा सकते है ,पैदल जाने में आपको काम से काम एक घंटा लगेंगे। पूरा रास्ता साफ सुथरा है और चौड़ा है और बहुत से सैलानी पैदल ही जाना पसंद करते हैं।
केदारनाथ ट्रेक शुरू
जब आप गौरीकुंड तक पहुँच जाते है तो उसके बाद आप कोई भी टैक्सी का उपयोग नहीं कर सकते है क्योकि आगे का रास्ता आपको चढ़ना होता है। गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक की दुरी 16 किमी है जिसको आप 3 तरीके से पूरी कर सकते है – पहला आप पैदल , दूसरा खच्चर या पिठठू और तीसरा हेलीकाप्टर से।
केदारनाथ की यात्रा शुरू करने से पहले श्रद्धालु लोग गौरीकुंड में स्नान करते है. 2013 से पहले यहाँ एक कुंड था लेकिन आपदा के बाद यहाँ वो कुंड गायब हो गया है और उसकी जगह पर एक घिरा हुआ पानी का बाड़ा है. गौरीकुंड में माता पार्वती का एक प्रसिद्ध मंदिर भी है जिसकी पूजा अर्चना करके ही लोग अपनी यात्रा प्रारम्भ करते है।
गौरी कुंड के पास ही उमा महेश्वर मंदिर भी है जहा भगवन शंकर की शिला के रूप में पूजा की जाती है. गौरीकुंड में खाने पीने के लिए बहुत साडी दुकाने है। यहाँ पर विश्राम के लिए होटल भी उपलब्ध है।
हमने अपनी यात्रा सुबह शुरू की। सुबह शुरू करने का फायदा यह हुआ की हम मन्दाकिनी नदी और आस पास का नजारा देखने को मिला जो बहुत ही अद्भुत था। आधे घंटे चलने के बाद हमे खच्चर और पिठ्ठू का बुकिंग सेन्टर मिला।
यहाँ पर वो लोग अपनी बुकिंग करते है जो केदारनाथ की चढ़ाई नहीं कर सकते है। छोटे बच्चे ,बूढ़े और बीमार लोग यहाँ से पिठ्ठू या खच्चर का उपयोग करते है।
गौरीकुंड से चलते हुए हमने भीमबली में अपना पहला विश्राम लिया। गौरीकुंड से भीमबली की दुरी 6 किमी है। जब हम गौरीकुंड से चले थे तो बहुत ही उत्साहित थे की केवल 16 किमी ही चढ़ाई करनी है लेकिन 6 किमी की चढ़ाई के बाद ही हमे लगने लगा की चढ़ाई बहुत ही कठिन है। यहाँ पर ही आपका अपने स्वास्थ और फिजिकल फिटनेस का इम्तिहान होता है।
यहाँ रुकने पर रुकने के बाद पानी पिया 10 मिनट आराम किया और फिर आगे की यात्रा शुरू किया। भीमबली में 2 रोड हो जाती है एक ट्रेकिंग के लिए दूसरी खच्चरों के लिए। दोनों रास्ते रामबाड़ा में जा कर मिलते है।
2013 से पहले रामबाड़ा कसबे के रूप में था लेकिन 2013 की त्रासदी के बाद यह उजड़ा हुआ है। कुछ लोगो ने अपने घर बनाया हुआ है। यहाँ पर मन्दाकिनी नदी अपने मदमस्त चाल से बाह रही थी। यहाँ पर आने के बाद हमे भूख लग गयी थी तो हमने होटल में खाना खाया। यहाँ पर ही बहुत सारे लोग रुकते है और खाना पीना करते है और फिर आगे की चढ़ाई शुरू करते है।
रामबाड़ा से चलते हुए हमे और भी साथी मिले जिसमे कुछ उत्तराखंड के लोकल थे वे अपनी भाषा के भगवन शिव की स्तुति कर रहे थे और हर हर महादेव और जय बाबा केदारनाथ का उद्घोष कर रहे थे। उनके उद्घोष से हमारे अंदर ऊर्जा का संचार हुआ और हम और हम और भक्ति भाव से चलने लगे।
गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर की दुरी
गौरीकुंड से जंगलचट्टी 4 किमी
जंगलचट्टी से भीमबली 2 किमी
भीमबली से रामबाड़ा 1 किमी
रामबाड़ा से छोटा लिनचोली 1.5 किमी
छोटा लिनचोली से लिनचोली 1.5 किमी
लिनचोली से छानी कैम्प 1 किमी
छानी कैम्प से रूद्र पॉइंट 2 किमी
रूद्र पॉइंट से बेस कैम्प 1 .5 किमी
बेस कैम्प से केदारनाथ मन्दिर 0.5 किमी
रामबाड़ा से चलते हुए छोटा लिनचोली को पार करते हुए हम लिनचौली पहुंचे। दोपहर के समय यहाँ पैर बहुत ही गर्मी हो रही थी लेकिन लिनचौली पहुंचने से कुछ देर पहले ही मौषम सुहाना हो गया था। यहाँ पैर विश्राम से लिए धर्मशाला और होटल है। अगर आप ज्यादा थक गए है तो आपको यहाँ ही रुक कर रात्रिविश्राम कर लेना चाहिए।
लेकिन हमे जल्द से जल्द केदारनाथ मंदिर पहुंचना था इसलिए हमने यहाँ पर ज्यादा देर न रुकने का फैसला किया। 1 से 2 घंटे विश्राम करके हमने आगे की चढ़ाई शुरू कर दी।
1 घंटे की और चढ़ाई के बाद हम केदारनाथ बेस कैंप पहुंचे। यहाँ पर GMVN सरकारी गेस्ट हाउस और अन्य गेस्ट हाउसेस है। यहाँ से केदारनाथ मंदिर की दुरी आधा किलोमीटर है। लेकिन अगर आप उसी दिन दर्शन करना चाहते है तो आपको बहुत लम्बी लाइन लगनी पड़ेगी।
लेकिन आप चाहते है की आप आराम से दर्शन कर ले तो आप को अगले दिन दर्शन करना चाहिए। तो हमने यहाँ पर सरकारी गेस्ट हाउस में एक रूम लिया और यही पर रुक गए। पुरे दिन की थकान एक बार बिस्तर पर जाने पर गायब हो गयी।
सुबह 7 बजे हम चेक पोस्ट पर पहुंचे जहा पर हमारा रजिस्ट्रेशन नम्बर पूछा गया। यहाँ पर रजिस्ट्रेशन स्लिप को देखा गया और हमे मंदिर की तरफ जाने दिया गया और आख़िरकार हम मंदिर पहुँच गए। जब हम मंदिर पहुंचे तो मंदिर की सुंदरता और उसकी ऊर्जा ने हमे अचंभित कर दिया।
9 बजे के करीब हमने बाबा केदारनाथ का दर्शन किया। यहाँ पर भक्तो की बहुत भीड़ लगी हुई थी। सभी लोग लाइन में लगे हुए थे और अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे और भक्ति भाव से जय केदार जय केदार और हर हर महादेव का उद्घोष कर रहे थे।
यह मन्दिर भारतीय हिन्दू शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है। यह मंदिर अपने आप को तीन भागो में समेटा हुआ है – पहला गर्भगृह जहा पर भगवन शिव शिवलिंग के रूप में विराजमान है, दूसरा मंडप जो खुला हाल है जहा पर तीर्थयात्री बैठ कर अपनी प्रार्थना कर सकते है, और तीसरा मंदिर का अग्र द्वार है जहा से श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते है।
मंदिर को बनाने में किसी भी प्रकार का सीमेंट या किसी चिपकने वाले पदार्थ का प्रयोग नहीं किया गया है।
मंदिर के अंदर का छत पत्थर की ओवरलैपिंग स्लैब से बनी हुई है ,और गुम्बद की संरचना ली हुई है। मंदिर की दीवारे पशु ,पंछियो और हमारे पौराणिक देवी देवताओ के चित्रों से बने हुए है। मंदिर के बाहरी हिस्से में कई छोटे छोटे मंदिरो से सजाया गया है जो अलग अलग देवताओ को समर्पित है।
हमने जब दर्शन कर लिया तो बहार आ कर कुछ देर मंदिर परिसर में बैठे रहे और मंदिर का नजारा लेते रहे और उसके बाद हमने अपनी यात्रा को ख़त्म करते हुए वापस गौरीकुंड की तरफ चलना शुरू किया।
केदरनाथ मंदिर के खुलने और बंद होने का समय
मंदिर सुबह 4 बजे से रात्रि के 9 बजे तक खुला रहता है। सुबह सुबह 4 बजे महा आरती होती है दोपहर में बाबा को भोग चढ़ाया जाता हैऔर 5:30 से 6:30 के बीच संध्या आरती की जाती है।
केदारनाथ कैसे पहुंचे?
सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जौली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून के पास है और यह 235 किलोमीटर दूरी पर है। केदारनाथ से एयरपोर्ट से सोनप्रयाग तक टैक्सी आदि उपलब्ध है। केदारनाथ से नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार या ऋषिकेश है।
आपको वहां से डायरेक्ट बस गुप्तकाशी और सोनप्रयाग के लिए मिल जाएंगे लेकिन बसों की संख्या कुछ कम है। आप ऑनलाइन बसों की साइट से भी बसें बुक कर सकते हैं। दिल्ली ISBT से भी बसे गुप्तकाशी, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर तक के लिए उपलब्ध होती है।
आप कार भी किराए पर ले सकते हैं गुप्तकाशी या सोनप्रयाग के लिए, लेकिन सबसे अच्छा होगा कि आप केदारनाथ और बद्रीनाथ या पूरे चार धाम यात्रा के लिए कार को बुक करें। कार का किराया ज्यादा होगा यदि आपने केवल सोनप्रयाग के लिए ही बुक किया।
अगर आप अपनी कार से ड्राइव कर रहे हैं तो आपको निम्नलिखित रूटों का पालन करना चाहिए
हरिद्वार – ऋषिकेश – पीपलकोटी – देवप्रयाग – श्रीनगर – रुद्रप्रयाग – अगस्तमुनि – गुप्तकाशी – फाटा – सोनप्रयाग
सोनप्रयाग के पास बहुत बड़ा पार्किंग स्पेस है जहां पर आप अपनी कार को रात के लिए रख सकते हैं। पार्किंग स्पेस से रजिस्ट्रेशन सेंटर कुछ ही मीटर की दूरी पर है।
केदारनाथ ट्रेक रूट
गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर की दूरी 16 से 17 किलोमीटर है।
केदारनाथ घोड़े खच्चर और पिट्ठू के द्वारा
गौरीकुंड से केदारनाथ तक के लिए घोड़े,खच्चर, पालकी या डण्डी – कण्डी भी उपलब्ध रहती हैं।
सोनप्रयाग से बेस कैंप केदारनाथ तक घोड़ा खच्चर से जाने के लिए यात्रियों को ₹3000 देने होंगे और केदारनाथ से सोनप्रयाग वापसी के लिए ₹2100 किराए देने होंगे। गौरीकुंड से केदारनाथ तक डंडी से यात्रा करने पर यात्रियों को अपने वजन के अनुसार 7000 से ₹9000 तक देने होते हैं ।
केदारनाथ हेलीकॉप्टर के द्वारा
आज के समय में अधिकतर लोग अपना समय बचाने के लिए हेलीकॉप्टर से केदारनाथ की यात्रा करते। गुप्तकाशी और सोनप्रयाग के बीच में फाटा में हेलीपैड स्थित है। हेलीकॉप्टर आपको केदारनाथ बेस कैंप तक लेकर जाएगा जहां से 1 किलोमीटर की दूरी होती है केदारनाथ मंदिर की वहां तक आपको पैदल ही जाना पड़ेगा।
यह दूरी आप घोड़ों के द्वारा भी पूरी नहीं कर सकते हैं क्योंकि इसकी अनुमति नहीं है। फाटा से केदारनाथ तक की का किराया ₹5500 है तथा सिरसी से केदारनाथ तक का किराया ₹5498 है।
FAQ
1 क्या केदारनाथ धाम के लिए कोई पास जरुरी है ?
Ans केदारनाथ धाम में यात्रा के लिए पास का होना जरुरी है। इसके लिए किसी भी प्रकार का शुल्क की जरुरत नहीं होती है। आप अपने पास अपना वैध दस्तावेज जरूर रखे जिससे की आप की पहचान सुनिश्चित हो सके।
2 केदारनाथ जाने में कितने पैसे खर्च होते है ?
Ans अगर आप दिल्ली से केदारनाथ जाते है तो आपका 15 से 20 हजार का खर्च आता है।
3 केदारनाथ के आस पास घूमने की जगह ?
Ans केदारनाथ के आस पास किए घूमने की जगह है जहा आप घूम सकते है। जैसे की वासुकि ताल ,भैरोनाथ मंदिर गौरीकुंड,चंद्रशिला गाँव तथा आदि गुरु शंकराचार्य समाधि।
4 क्या हम ट्रैन से केदारनाथ धाम जा सकते है?
Ans केदारनाथ धाम तक रेल नहीं चलती है। आप हरिद्वार या ऋषिकेश तक रेल से जा सकते हैं। उसके आगे आप को टैक्सी या बस से जा सकते हैं।
5 क्या केदारनाथ ट्रेक आसान हैं ?
Ans केदारनाथ ट्रेक 16 से 18 किमी का ट्रेक हैं जिसके लिए आप को शारीरिक रूप से फिट होना चाहिये।
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